मनचाहे गीत- अनचाहे सुर

मनचाहे गीतों में क्यों अनचाहे सुर बजते हैं,
खिले गुलजार में भी क्यों मुरझाए फूल खिलते हैं।।

जब-जब ये जीवन खुशियों से सरोबार हुआ है,
तब-तब दिल जाने किस चाहत में उदास बार-बार हुआ है,
पूरी होती मन्नतों के बीच, ये ख्वाब हमारे हर बार जलते हैं।
मनचाहे गीतों में क्यों अनचाहे सुर बजते हैं।
खिले गुलजार में भी क्यों मुरझाए फूल खिलते हैं।।

राहें हैं सही दिशा में, मंजिलें बदल जाती हैं हमेशा
गुजरते तो हैं उन्ही रास्तों से,पूरी नही होती पर मंशा
मिलता है सपनों को आधार,पर बाद में हम आहें भरते हैं
मनचाहे गीतों में क्यों अनचाहे सुर बजते हैं।
खिले गुलजार में भी क्यों मुरझाए फूल खिलते हैं।।

जन्नतों  के ख्वाब सजाए पर जीना छोङ दिया है
साहिलों को तकते-तकते दरिया सुला दिया है
अंजाम पर जाकर हाथों में छाले मिलते हैं
मनचाहे गीतों में क्यों अनचाहे सुर बजते हैं।
खिले गुलजार में भी क्यों मुरझाए फूल खिलते हैं।।

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