प्यारी माँ,
याद है आपको, उस दिन जब मैं शीतल के घर मेरी किताब लेने जा रही थी, बिना दुपट्टे, तो आपने क्या कहा था- यही बेशरमी तो लङको को बुलावा देती है और कुछ ऊँच-नीच हो जाती है। अपने भाई के साथ जाना, जमाना बङा खराब है, अकेली लङकी के साथ कौन क्या करदे, क्या भरोसा किसी का! लङकी को अकेले घर से बाहर नही जाना चाहिए, बाहर दुनिया बहुत बुरी है। समझी! तब इस ऊँच-नीच का मतलब ठीक से कहाँ समझ आया था मुझे।
पर माँ उस रात तो मैंने कपङे भी एकदम सही पहने थे, दुपट्टा भी ओढा हुआ था। मैंने तो स्कूल से आने के बाद एक बार घर से बाहर झाँका तक नहीं। भाई भी घर पर ही था, फिर मेरे साथ ये ऊँच-नीच क्यूँ हुई माँ?? मुझसे क्या गलती हो गई थी माँ??
पता है माँ मुझे बहुत दर्द हो रहा है और उससे भी ज्यादा घिन्न आ रही है, जो हुआ उसको याद कर-करके। वो सब मेरी आँखों के आगे घुम रहा है। मुझे अपने ही शरीर से नफरत हो गई है। छीः.......!! वो सब कितना गन्दा था माँ! सबकुछ गन्दा लग रहा है मुझको-सारी दुनिया गन्दी लग रही है और आप सब भी। तब ये क्यूँ नही बताया माँ घरवाले भी बुरे होते हैं?
फिर भी आपने उनको कुछ क्यूँ नही कहा......?? उल्टा मुझे ही मारकर चुप करा दिया। मैंने क्या किया था, मेरा क्या कसुर था?? आपने मुझसे ठीक से बात भी नहीं की।
मुझसे नही सहन हो रही ये तकलीफ, ये दर्द और आप लोगों की ये नजरअंदाजी, आपका गुस्सा! आखिर मैने किया ही क्या था माँ? मैं ऐसे नही जी सकती। इसलिए जा रही हूँ सबसे दूर। मेरे कितने सपने थे माँ। बङा अफसर बनना चाहती थी- बुरे लोगों को सजा दिलाना चाहती थी, पर मैं तो अपने ही घर के बुरे आदमियों को ही नही पहचान पाई। बाहरवालो को कैसे पहचानती भला?
माँ आप तो मेरी तकलीफ को समझती ना। बस एक बार तो मुझे सीने से लगा लेती माँ। मैं कैसे भी जी लेती। पर आपने तो मुझे कितना डाँटा, कितना मारा। मुझे तो मेरी गलती का भी नही पता। आपने मेरे साथ ऐसा क्यूं किया माँ??
बस अब मैं नही जी सकती। मैं जा रही हूँ। मेरे जाने से भी आप सबको कोई फर्क नही पङेगा ना। पर आप लोगों की ईज्जत तो बच जाएगी। यही तो कह रही थी ना आप - तू मर जाती तो अच्छा होता। तो मैं मर रही हूँ माँ। आपकी बात मान ली मैंने, क्योंकि मैं तो आपकी अच्छी बेटी हूँ ना। पर आप अच्छी नही हो, आप बहुत बुरी माँ हो, दुनिया की सबसे बुरी माँ!
मुझे नही पता दुनिया कैसी थी, आपने कभी देखने ही नही दी। पर मेरे घरवाले बहुत बुरे हैं तो दुनिया तो और भी बुरी होगी शायद। अब तो देखनी भी नही दुनिया ।मैं इस दुनिया में वापिस कभी नही आऊँगी, कभी भी नहीं।
आप सबको तो शायद माफ कर दू पर पापा को कभी नही उनको तो भगवान भी माफ नही करेगा।
भगवान ऐसा बाप किसी को ना दे। बहुत नफरत करती हूँ मैं उनसे, इतनी ज्यादा की बता भी नही सकती, मरकर भी करती रहूँगी।

आखिरी बार -- bye माँ, सबको bye।।
माँ ने अपने आँसु झटपट पोंछे और उस खत को रसोई में जाकर जला दिया ताकि किसी को वो खत ना मिले। उसकी मौत का बहाना भी सोच लिया था लोगों के आने से पहले ही।।।।
याद है आपको, उस दिन जब मैं शीतल के घर मेरी किताब लेने जा रही थी, बिना दुपट्टे, तो आपने क्या कहा था- यही बेशरमी तो लङको को बुलावा देती है और कुछ ऊँच-नीच हो जाती है। अपने भाई के साथ जाना, जमाना बङा खराब है, अकेली लङकी के साथ कौन क्या करदे, क्या भरोसा किसी का! लङकी को अकेले घर से बाहर नही जाना चाहिए, बाहर दुनिया बहुत बुरी है। समझी! तब इस ऊँच-नीच का मतलब ठीक से कहाँ समझ आया था मुझे।
पर माँ उस रात तो मैंने कपङे भी एकदम सही पहने थे, दुपट्टा भी ओढा हुआ था। मैंने तो स्कूल से आने के बाद एक बार घर से बाहर झाँका तक नहीं। भाई भी घर पर ही था, फिर मेरे साथ ये ऊँच-नीच क्यूँ हुई माँ?? मुझसे क्या गलती हो गई थी माँ??
पता है माँ मुझे बहुत दर्द हो रहा है और उससे भी ज्यादा घिन्न आ रही है, जो हुआ उसको याद कर-करके। वो सब मेरी आँखों के आगे घुम रहा है। मुझे अपने ही शरीर से नफरत हो गई है। छीः.......!! वो सब कितना गन्दा था माँ! सबकुछ गन्दा लग रहा है मुझको-सारी दुनिया गन्दी लग रही है और आप सब भी। तब ये क्यूँ नही बताया माँ घरवाले भी बुरे होते हैं?
फिर भी आपने उनको कुछ क्यूँ नही कहा......?? उल्टा मुझे ही मारकर चुप करा दिया। मैंने क्या किया था, मेरा क्या कसुर था?? आपने मुझसे ठीक से बात भी नहीं की।
मुझसे नही सहन हो रही ये तकलीफ, ये दर्द और आप लोगों की ये नजरअंदाजी, आपका गुस्सा! आखिर मैने किया ही क्या था माँ? मैं ऐसे नही जी सकती। इसलिए जा रही हूँ सबसे दूर। मेरे कितने सपने थे माँ। बङा अफसर बनना चाहती थी- बुरे लोगों को सजा दिलाना चाहती थी, पर मैं तो अपने ही घर के बुरे आदमियों को ही नही पहचान पाई। बाहरवालो को कैसे पहचानती भला?
माँ आप तो मेरी तकलीफ को समझती ना। बस एक बार तो मुझे सीने से लगा लेती माँ। मैं कैसे भी जी लेती। पर आपने तो मुझे कितना डाँटा, कितना मारा। मुझे तो मेरी गलती का भी नही पता। आपने मेरे साथ ऐसा क्यूं किया माँ??
बस अब मैं नही जी सकती। मैं जा रही हूँ। मेरे जाने से भी आप सबको कोई फर्क नही पङेगा ना। पर आप लोगों की ईज्जत तो बच जाएगी। यही तो कह रही थी ना आप - तू मर जाती तो अच्छा होता। तो मैं मर रही हूँ माँ। आपकी बात मान ली मैंने, क्योंकि मैं तो आपकी अच्छी बेटी हूँ ना। पर आप अच्छी नही हो, आप बहुत बुरी माँ हो, दुनिया की सबसे बुरी माँ!
मुझे नही पता दुनिया कैसी थी, आपने कभी देखने ही नही दी। पर मेरे घरवाले बहुत बुरे हैं तो दुनिया तो और भी बुरी होगी शायद। अब तो देखनी भी नही दुनिया ।मैं इस दुनिया में वापिस कभी नही आऊँगी, कभी भी नहीं।
आप सबको तो शायद माफ कर दू पर पापा को कभी नही उनको तो भगवान भी माफ नही करेगा।
भगवान ऐसा बाप किसी को ना दे। बहुत नफरत करती हूँ मैं उनसे, इतनी ज्यादा की बता भी नही सकती, मरकर भी करती रहूँगी।

आखिरी बार -- bye माँ, सबको bye।।
माँ ने अपने आँसु झटपट पोंछे और उस खत को रसोई में जाकर जला दिया ताकि किसी को वो खत ना मिले। उसकी मौत का बहाना भी सोच लिया था लोगों के आने से पहले ही।।।।