तुमसे मिलने के नाम पर ना हुई थी कोई हलचल,
ना खुशी थी, ना गम था, ना भारी हो रहा था पल-पल।
पर जब तेरे पास होने का हुआ मुझे अहसास,
तब होने लगी धङकने बेतरतीब और बदहवाश,
सपना ना हो ये, बस कर रही थी यही अरदास,
सोचा देखकर तुमको कैसे सँभालूँगी होशो-हवास।।
आँखों ने नही मेरे दिल ने तुझे पहचाना था,
तुम्हे प्रत्यक्ष देखकर ही हकीकत को माना था,
उस वक्त मेरा अस्तित्व मुझसे ही अन्जाना था,
उसे देखते ही नजरें बदली, जिसे गले से लगाना था।।
तुम तो वही थे दिखाई दिया तुम्हारा वही प्यार,
पर मैं कही खो गई थी होकर बेइंतहा बेकरार,
छुप-छुप, प्यार भरी नजरों से देखा तुझे बार-बार,
पर निष्ठुरता के मुखौटे से होने ना दिया इजहार।।
कितनी बेदर्दी से मैने खुद को था मारा,
नजरअंदाज किया उसे जो था खुद से भी प्यारा,
बिछुङनेे के नाम से रुँध गया था गला बेचारा,
खा ना पाई कुछ तभी तो था बहाना मारा।।
मन कह रहा था क्यूँ आई? भाग जाऊँ मैं यहाँ से,
पर कितनी तङप उठी थी जुदा होने के नाम से ,
तुम भी तो कितने बेचैन हो गए थे इस अहसास से,
धरती में समा जाती, अच्छा था, उस प्यास से।।
तुझसे दूर होते वक्त हो गई थी मैं पत्थर,
जल कर, भस्म हो गया सब, तुझे जाता देखकर,
कितना प्यार था, जो जतलाया तुमने, आखिरी अलविदा कहकर,
तुझे कभी अपने प्यार का अहसास ना करा सकी चाहकर।।
चुपचाप आ गई थी मैं छोङकर पीछे अपनी जिंदगी,
खुद से ज्यादा चाहा तुझको पर कर ना सके तुम्हारी बंदगी, मर भी नही सकती, ऊपरवाले देखकर तेरी ऐसी दरिंदगी,
निर्दोष होकर सबकुछ छिन जाने की साथ जाएगी ये शर्मिंदगी।।
ना खुशी थी, ना गम था, ना भारी हो रहा था पल-पल।
पर जब तेरे पास होने का हुआ मुझे अहसास,
तब होने लगी धङकने बेतरतीब और बदहवाश,
सपना ना हो ये, बस कर रही थी यही अरदास,
सोचा देखकर तुमको कैसे सँभालूँगी होशो-हवास।।
आँखों ने नही मेरे दिल ने तुझे पहचाना था,
तुम्हे प्रत्यक्ष देखकर ही हकीकत को माना था,
उस वक्त मेरा अस्तित्व मुझसे ही अन्जाना था,
उसे देखते ही नजरें बदली, जिसे गले से लगाना था।।
तुम तो वही थे दिखाई दिया तुम्हारा वही प्यार,
पर मैं कही खो गई थी होकर बेइंतहा बेकरार,
छुप-छुप, प्यार भरी नजरों से देखा तुझे बार-बार,
पर निष्ठुरता के मुखौटे से होने ना दिया इजहार।।
कितनी बेदर्दी से मैने खुद को था मारा,
नजरअंदाज किया उसे जो था खुद से भी प्यारा,
बिछुङनेे के नाम से रुँध गया था गला बेचारा,
खा ना पाई कुछ तभी तो था बहाना मारा।।
मन कह रहा था क्यूँ आई? भाग जाऊँ मैं यहाँ से,
पर कितनी तङप उठी थी जुदा होने के नाम से ,
तुम भी तो कितने बेचैन हो गए थे इस अहसास से,
धरती में समा जाती, अच्छा था, उस प्यास से।।
तुझसे दूर होते वक्त हो गई थी मैं पत्थर,
जल कर, भस्म हो गया सब, तुझे जाता देखकर,
कितना प्यार था, जो जतलाया तुमने, आखिरी अलविदा कहकर,
तुझे कभी अपने प्यार का अहसास ना करा सकी चाहकर।।
चुपचाप आ गई थी मैं छोङकर पीछे अपनी जिंदगी,
खुद से ज्यादा चाहा तुझको पर कर ना सके तुम्हारी बंदगी, मर भी नही सकती, ऊपरवाले देखकर तेरी ऐसी दरिंदगी,
निर्दोष होकर सबकुछ छिन जाने की साथ जाएगी ये शर्मिंदगी।।
2 comments
commentsHeart touching lines🌹🌹
ReplyThanks for appreciation
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