सूखी झाङियों के झुरमुटों सी ये मेरी जिंदगी,
बहार जो आ भी गई तो काँटों की सौगात ही देगी।।
चाहतों की फुहारें हों या महोब्बतों की बहार,
मेरी तो खैर हर चाहत होती रही है बेजार।
गर मेहरबान हो जाए तकदीर भी तो क्या
सपने ही जल गए सारे,पूरे होंगे भी तो क्या
भला घावों पर नमकीन बारिशें कब राहतें देंगी,
सूखी झाङियों के झुरमुटों सी ये मेरी जिंदगी।
बहार जो आ भी गई तो काँटों की सौगात ही देगी।।
कितना तलाशा तेरा वजूद, ए ईश्क मेरे जहाँ में,
ना मालूम था हम तो हैं आवारा तेरी निगाह में।
रुसवाईयों की दुत्कार मिली इतनी तेरे दरो-दिवार से,
कि सब्र भी हार गया सदियों से इम्तहान लेते इंतजार से।
उजङी अहसासों की जन्नत,आहटें भी तरंगें ना जगा सकेंगी,
सूखी झाङियों के झुरमुटों सी ये मेरी जिंदगी।
बहार जो आ भी गई तो काँटों की सौगात ही देगी।।
पीते रहे जीते रहे, तकलीफों के दर्दे-जहर,
फिर भी कम नहीं होते लकीरों के ये कहर ।
क्या करें उम्मीदें,नाउम्मीदी से है अब याराना,
महफिलों से सजी दुनिया, मेरा आशियाँ है वीराना।
खुशियों की शहनाई, अब मातम का अहसास देंगी,
सूखी झाङियों के झुरमुटों सी ये मेरी जिंदगी।
बहार जो आ भी गई तो काँटों की सौगात ही देगी।।