शून्य की ओर ताकती ये नजरें गुम सी हो जाती हैं।
सब गुजरता तो है इनके सामने से पर ये देख कहाँ पाती हैं।।
उस एक चेहरे को देखने की लालसा से ये यूँ ही भावशून्य हो जाती हैं।
दिल की उस कसक की कभी झलक भी नहीं दिखाती हैं।।
पर तन्हाई में उस तङप को जलते अश्कों संग बहाती हैं।
मंजिल नहीं है जिन राहों की क्यूँ उन्ही को तकते जाती हैं।।
उजङ चुके उस वीराने में एक साये को देखना चाहती हैं।
जबकी तकदीर की रूसवाईयाँ रोज इसे गले लगाती हैं।।
हकीकत भी दिए जख्म पर नमक ही बार-बार लगाती है।
ये भी जानती हैं अब ना होगा वो जो रातें उसे दिखाती हैं।।
हर कदम पर टूट-टूट कर एक ही चाहत उसे रुलाती है ।
यूँही तेरे इंतजार में एक दिन चुपचाप बंद हो जाना चाहती हैं।।
बस तेरे इंतजार में एक दिन चुपचाप बंद हो जाना चाहती हैं।।
सब गुजरता तो है इनके सामने से पर ये देख कहाँ पाती हैं।।
उस एक चेहरे को देखने की लालसा से ये यूँ ही भावशून्य हो जाती हैं।
दिल की उस कसक की कभी झलक भी नहीं दिखाती हैं।।
पर तन्हाई में उस तङप को जलते अश्कों संग बहाती हैं।
मंजिल नहीं है जिन राहों की क्यूँ उन्ही को तकते जाती हैं।।
उजङ चुके उस वीराने में एक साये को देखना चाहती हैं।
जबकी तकदीर की रूसवाईयाँ रोज इसे गले लगाती हैं।।
हकीकत भी दिए जख्म पर नमक ही बार-बार लगाती है।
ये भी जानती हैं अब ना होगा वो जो रातें उसे दिखाती हैं।।
हर कदम पर टूट-टूट कर एक ही चाहत उसे रुलाती है ।
यूँही तेरे इंतजार में एक दिन चुपचाप बंद हो जाना चाहती हैं।।
बस तेरे इंतजार में एक दिन चुपचाप बंद हो जाना चाहती हैं।।
2 comments
commentsGreat mam
ReplyThank you sir
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