वेदना-राग

तुम बेवफा नही हो,
तो कैसे सहते होगे इस वेदना को ??
जैसे मैं सहती हूँ,
इस धँसती हुई छेदना को।
तुम भी तङपते होगे,
इक पल के लिए ही सही याद करके मुझे।
पर मुझे तो फुर्सत ही नही,
जो तेरे सिवा इस दिल को कुछ और सूझे।।
कितना समझाया खुद को,
और कितना ही खुद को बहलाती हूँ।
पर लगता है सब नकली,
जब वही तङप, बेचैनी दिल में पाती हूँ।
तू भी तो बेचैन होगा,
जब मेरा जिक्र होता होगा तेरे सामने।
इक-दूजे का सपना थे हम,
पर क्यूँ नही मिलाई ये जोङी उस राम ने।।
क्यूँ दिया तुझे वो सब..??
जो मैनें उससे भूले-भटके ही माँगा था।
सब-कुछ देकर मुझको क्यूँ ,
छीन लिया सब और अधर में मुझको टाँगा था।।
जीवन बन गया एक तमाशा,
कैसा खेल है ये ए मेरे खुदा!
मारकर जिंदा रखा तूने,
किस जुर्म की सजा की है अदा..???

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