दिल का टूटा हिस्सा

मेरे दिल का वो हिस्सा,
जो तकदीर की बलिवेदी पर जख्मी पङा है।
इस क्रूर समझौते की घुटन से,
जो हर पल बेचैन होकर तङप रहा है।
उस टूटे हुए हिस्से को मैंने,
फेंक दिया है किसी अंधेरे कोने में।
पर ओढकर निष्ठुरता की चादर भी,
 प्रश्नचिन्ह लगा ना सकी उसके होने में।।
पर फिर भी भींच ली आँखें,
और कानोे पर रख दिए हाथ,
ताकि दिखाई ना दे उसके जख्म,
और सुने ना सिसकियों का आतर्नाद।।
या तो संभल जाएगा खुद ही,
या इस दर्द के हाथों बेदर्दी से कत्ल हो जाएगा।
छोङ दिया है उसको लावारिस,
पर क्या टूटा हिस्सा जुङ पाएगा?
ये क्या सोच रही हूँ मैं?
होता नहीं कभी ऐसा चमत्कार,
कि मरने वाला जी उठे,
और टूटे टुकङों की जुङ जाए दरार।।
उस हिस्से को जब भी छुआ,
तो एक असहनीय पीङ से मरी जाती हूँ,
इसीलिए तो बनकर पत्थर,
उसको अंधेरे कोने में ही छोङकर चली आती हूँ।।

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