राहे-गुजर

खैर मंजिल तो तय हो ही चुकी है,
अब तो देखना है राहे-गुजर क्या होगा।।
कहते हैं लोग जालिम है दुनिया बङी,
पर कम से कम ये गम तो ना होगा
कि अपनों ने ही दिया धोखा।।

बेइंतहा दर्द से जब तङप रहा था दिल
तो भगवान ने कहा- मत रो अंशात्मा,
मुस्करा तेरी गलियों मे अब ना कोई रोङा होगा।।

चाहे-अनचाहे जो दुखाया होगा दिलों को,
बेबसी और मजबूरियों में गुजारा था लम्हों को,
कह रहे हैं- होने वाला है इम्तिहान पूरा ,
लगता है सजा पूरी होने का वक्त होगा।।

जिस ख्याल से ही दहल उठता था दिल,
किया हर समझौता और रोए तिल-तिल,
जब हकीकत बना तो काफूर हुआ सब डर,
अब तो बर्बादियों में ही तो जश्न होगा।
रब ने ही तो जो ये राहे-गुजर चुना होगा।।

मिन्नतों से तो जिल्लतें ही हुई हासिल,
कठिन मिली राहें, क्योंकि हम हैं काबिल,
दर दर भटकना तो लहरें हैं साहिल की,
अब तो ठोकरों में भी अजब सा शबाब होगा।।

तकदीर ने ढाए जब हजारों सितम,
तो रब ने कानों में फुसफुसाई ये नज्म,
परेशानी नही उसमें हो रहा है जो,
क्योंकि होगा वही जो मंजुरे-खुदा होगा।
बस आनंद उठा उसका जो भी राहे-गुजर होगा।।

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