चांटा

"सुन, कहाँ जा रही है? ?"
"अरे मम्मी !..बस वो गली के मोड़ तक ही जा रही हूँ। मेरा पेपर है ना परसों, तो मुझे कुछ जरुरी नोट्स चाहिए है। मेरी वो सहेली है ना सिम्मी, वो अभी अपनी ट्युशन क्लास से घर जाते हुए मुझे अपने नोट्स देने के लिए उस मोड़ तक आ रही है। आपको तो पता है ना मेरा गणित कितना कमजोर है। मेरी तैयारी में मदद हो जाएगी। नहीं तो बहुत गंदे नंबर आएँगे मेरे।"- अपनी मम्मी के कंधो पर हाथ रखते हुए संध्या ने कहा।
"क्यूँ ..?? उसे पढाई नहीं करनी क्या..? जो वो अपने नोट्स तुझे देने आ रही है।"-मम्मी ने पूछा।
"अरे मम्मी, उसने वो नोट्स अच्छे से दोहरा लिए तभी बड़ी मुश्किल से देने को तैयार हुई है। अब मैं जाऊँ??..नहीं तो वो चली जाएगी। बड़ी मुश्किल से मनाया है यहाँ तक आने के लिए।"-संध्या ने पूछा।
"ठीक है पर अकेले नहीं जाएगी तू। अपने भाई को बोल तेरे साथ चलने को।"-मम्मी ने हुक्म दिया।
"मम्मी..!!! ये क्या बात हुई भला...??? आपको पता तो है ना भाई का, वो कहाँ घर में रहते हैं। पता नहीं कहाँ निकल गए थे घर आते ही। अरे मम्मी जाने दो ना, यही तक तो जाना है, वो मेरा इंतजार कर रही होगी, ज्यादा देर नहीं रुकेगी। प्लीज मम्मी।"-संध्या ने जिद करते हुए कहा।
"ठीक है तो मैं चलती हूँ तेरी साथ।"-मम्मी नेअपना दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।
"ठीक है  मम्मी तो फिर जल्दी चलो।"- संध्या ने चहकते हुए कहा।

नोट्स लेने के बाद घर में घुसते ही संध्या ने अपनी मम्मी से पूछा- "मम्मी मुझे एक बात समझ नहीं आती भाई सारा दिन घर से बाहर रहते हैं। बिना बताए कहीं भी जाते हैं। आप उनको तो कभी कुछ नहीं कहती। मैं नीचे गली तक भी जाऊँ तो कभी अकेले नहीं जाने देती। ऊपर से दस सवाल पूछती हो। ऐसा क्यों ..???"
"देख बेटा तू लड़की है और जमाना बहुत बुरा है। तुम्हारे साथ कुछ गलत हो गया तो?  हम क्या करेंगे फिर..?? कौन तुझसे शादी करेगा..??  घर की इज्ज़त उछलेगी सो अलग। और बात सिर्फ जमाने की नहीं है, भले घर की लड़कियाँ ऐसे मटरगश्ती करती नहीं घूमती। भाई तो लड़का है। यही तो उम्र है मौज-मस्ती की। फिर तो जीवन के इतने छमेले हैं,उसको कहाँ वक्त मिलेगा मौज-मस्ती का।"- मम्मी ने समझाते हुए कहा।
 "तो क्या लड़कियों को सिर्फ शादी के लिए जन्म दिया जाता है..?? हमारी उम्र कब होती है मौज-मस्ती की और भले घर के लड़के आवारागर्दी करते फिरते रहे तो घर की इज्ज़त नहीं उछलती क्या मम्मी..??"- संध्या ने तपाक से नए सवाल दाग दिए।
"बड़ी ज़बान चलने लगी है तेरी तो। अब मेरी ये बात कान खोलकर सुन जब एक लड़की अपने बाप के घर पर बाप-भाई की मर्जी से चले और पति के घर में पति की मर्जी से रहे तो सारी उम्र मौज में रहती है। ये जो अपने माँ-बाप और पति की  शिकायतें करती हैं ना, वो ज्यादातर उनकी मर्जी से नहीं चलती इसलिए सारी दिक्कतें होती हैं। तुझे भी ये सब सीखना है इसलिए बता रही हूँ। क्योंकि शरीफ़ और सुशील लड़कियों की यही निशानी होती है। समझी।"- मम्मी ने इस बार थोङा और सख्ती से समझाते हुए कहा।
"और शरीफ़ और सुशील लड़कों की क्या निशानी होती है मम्मी..?? लड़कियाँ दूसरों की मर्जी से ही जीने के लिए पैदा होती हैं क्या..?? क्या कभी अपनी मर्जी से नहीं जी सकती ..??"- संध्या सवाल पर सवाल करते हुए बोली।
"अरे..! कितने सवाल पूछेगी तू..?? अगर तू इन सबको खुश रखेगी तो ये सब भी तो तेरी खुशी का ख्याल रखेंगे।"-मम्मी ने इस बार थोङा शांति से समझाते हुए कहा।
"तो इसका मतलब लड़कियां तो सिर्फ दूसरों का हुक्म बजाने के लिए जन्म लेती हैं। पर स्कूल में तो सिखाया जाता है कि मैं पढकर कुछ भी कर सकती हूँ ,तो क्या मैं अपनी मर्जी से नहीं जी सकती..?? और आप लड़कों के बारे में कुछ क्यूँ नहीं कह रहीं..?? मैंने कितनी बार आपको बताया है भैया की हरकतों के बारे में । मेरी सब  सहेलियाँ उनकी शिकायत करती हैं कि वो आते-जाते उनको छेड़ते हैं। पर आपने आज तक भी उनको कुछ नहीं कहा। कभी उनपर भी जरा रोक-टोक लगा दिया करो। मेरी बड़ी बेइज्जती करवा रखी है उन्होने पूरे स्कूल में।"-संध्या ने रोष दर्शाते हुए कहा।
"बस बहुत हुआ अब और फालतू बकवास नहीं। दुनिया में हमेशा से ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होगा। तू कोई अल्बेली नहीं है, जो तेरे साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। मुझे नहीं कहना तेरे भाई को कुछ। अभी बच्चा है, जब बड़ा होगा अपने आप सब समझ जाएगा। तू मुझे मत सीखा,  तू कल की लड़की मुझे बताएगी क्या सही है और क्या गलत। तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है मैने।....और अब तुझे पेपर की तैयारी नहीं करनी क्या..?  जा पढ ले जाकर। एक बात और कान खोलकर सुन ले, आगे से ये सब बकवास बोलना तो दूर, सोचना भी मत। समझी..! लङकियों को ऐसे ही जीना होता है। अब अगर मार ना खानी हो तो जाकर चुपचाप पढाई कर ले।"- मम्मी ने संध्या को चांटा दिखाते हुए कहा।
थोड़ी देर बाद-
 संध्या के पापा चिल्लाते हुए घर के अंदर आए - "सीमा कहाँ हो तुम। जल्दी यहाँ आओ। सीमा...??..... सीमा..?? सुनती हो कि नहीं..?? कब से चिल्ला रहा हूँ..!"
"क्या हुआ..?? आ रही हूँ। क्या बात है..?? सब ठीक तो है ना..??"- संध्या की मम्मी ने घबराते हुए पूछा।
"सब ठीक ही तो नहीं है। रोहन को पुलिस पकड़कर ले गयी है। तुम्हारे भाई को फोन करो जल्दी से कोई जुगाड़ लगाये और जल्द से जल्द उसे छुड़ाए।"- संध्या के पापा ने हाँफते हुए कहा।
"हे भगवान..! पर क्यूँ..??  मेरे बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा है..???"- मम्मी ने रोते हुए पूछा।
"वो सब बाद में बताऊँगा, पहले तू अपने भाई को फोन तो लगा।"
"ठीक है, अभी लगाती हूँ।"

"मम्मी बड़ी तेज भूख लगी है, खाने को है क्या कुछ? ? और पापा क्या कह रहे थे। वो मैं कम्प्यूटर पर हैडफोन लगाकर काम कर रही थी, तो सुनाई नही दिया क्या कह रहे थे वो।................. मम्मी....! क्या हुआ...?? आप ठीक तो हो ना? ?"- संध्या ने अपनी मम्मी को रोते हुए देखकर पूछा।
"वो तेरे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी।"-मम्मी ने रोते हुए बताया।
"क्या?? पर क्यूँ??"- अचानक संध्या के मुँह से निकला।
"अरे किसी करमजली ने पुलिस में शिकायत कर दी छेड़छाड़ की। उसे और उसके दोस्तों को पुलिस उठा कर ले गयी।....... कीड़े पड़े उस करमजली को..!! तेरे पापा बता रहे थे पुलिस ने बहुत मार लगाई मेरे लाल को। हाय..! ... हाथ नही काँपे उनके मेरे मासूम से लाल को मारते समय। ..जरा सी भी दया नहीं आई उनको..?? और ये  लड़कियाँ..! कोई शर्म लिहाज तो है नहीं इनको, खुद तो नंगा-नाच करती फिरती है, कोई कुछ कहदे इनकी बेशरमी देखकर तो पुलिस बुला लेती हैं।... पता नहीं कोई इनको कुछ क्यूँ नहीं कहता और पुलिस इनको क्यूँ नहीं पकड़ती..?? कितना गंद फैला रखा है हर जगह इन्होने।"- मम्मी गुस्से में बङबङाने लगी।
"गंद इन्होने नहीं आपके बेटे ने फैला रखा है।"-संध्या गुस्से से तमतमाती हुई बोली-" कितनी बार मैंने आपको बताया था भाई की हरकतों के बारे में। पर आप हमेशा मुझे ही चुप कर देती। आज ही तो बताया था मैंने, आप तो मारने तक चली थी मुझे।........ पर नहीं सारी बंदिशें तो लङकियों के लिए होती है ना, भगवान ने तो सिर्फ लङकों को ही बनाया है ना, हमको नहीं। इसलिए उनको गलत करने का लाईसेंस भी मिल गया ना..! है ना मम्मी..!! और कैसी बेशरमी मम्मी..?? स्कुल की वर्दी और आप जो पहनते हो वो भी बेशरमी में आता है क्या। क्योंकि वो स्कूल की लङकियों को तो छोङो आप की उम्र की औरतों को भी नही बख्शते। ये सब नंगा-नाच और बेशरमी में नहीं आता है क्या.. ?? वैसे भी गंद कपङों में नही भाई जैसे लोगों की सोच में होता है।"
 एक गहरी और लंबी सांस लेकर संध्या फिर से कहना शुरू करती है- "काश उनको भी रोका-टोका होता तो आज ये दिन ना देखना पङता। काश के कभी आप लोग ये समझे कि लङकों को समझाना भी आप लोगों की ही जिम्मेदारी होती है और उनको भी रोकना-टोकना होता है, क्योंकि माहौल सिर्फ लङकियाँ खराब नहीं करती। लङके भी जिम्मेदार होते हैं उस माहौल को खराब करने में। ये सरासर आप लोगों की गलती है, अगर आप दोनों ने उसको समझाया होता कि ये सब गलत है तो शायद वो ऐसा कभी नहीं करते।"

अचानक से एक जोरदार चांटा उसके मुँह पर पङता है।
"....चुपचाप चली जा यहाँ से, वरना अब तेरे साथ जो सलुक होगा उसकी जिम्मेदार तू होगी।..... बङी आई हमको गलत कहने वाली। कहीं गुस्से में मैं हद से बढ जाऊँ तू चुपचाप चली जा यहाँ से।"-गुस्से में लाल-पीली होते हुए मम्मी ने कहा।

 संध्या पैर पटकते हुए अपने कमरे में गई और धङाम से बैड पर गिरकर रोने लगी। रोते-रोते उसके दिमाग में एक सवाल कौंधा- ये चांटा उसके मुँह पर था या समाज के।।।।




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6 comments

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April 16, 2019 at 9:20 AM delete

Bilkul ladkiyon ki bachpan s hi km dekhbal hoti hai.....aaj b bhut hai jo y phrk krte hai ..

....

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April 20, 2019 at 1:02 AM delete

Thanks for appreciation..
Haan Ji abi b jyadatar gharo me aisa hi hota h

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June 14, 2019 at 4:39 AM delete

So true very much close to our childhood. Good job neerjhara

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June 14, 2019 at 6:04 AM delete

Good story.. I feel like a live 👍👍

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June 14, 2019 at 8:24 AM delete

Thanks a lot dear for encouraging words..!!

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