तिल-तिल करके टुकड़े -टुकडे़ हो रहा है ये मेरा दिल,
हम तो हैं तन्हा पर देखो सज गई है महफिल।
यकीं हो चला है अब तो, हम नहीं खुशियों के काबिल,
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल ।।
उस क्षितिज़ के जैसी ही, अपनी भी अधुरी कहानी है,
गम ही है साथी अब तो, खुशियाँ तो यारों बेगानी हैं।
ठहर गया सब मौत के जैसा,खत्म अब तो वो रवानी है,
ख्वाब रौंद कर पैरों तले,अपनी जिंदगी तो यूँही आनी-जानी है।।
सपने भी बँध गए बेड़ियों में, दुआएँ गई हैं अब तो सिल।
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल
हम तो हैं तन्हा पर देखो सज गई है महफिल।
यकीं हो चला है अब तो, हम नहीं खुशियों के काबिल,
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल ।।
उस क्षितिज़ के जैसी ही, अपनी भी अधुरी कहानी है,
गम ही है साथी अब तो, खुशियाँ तो यारों बेगानी हैं।
ठहर गया सब मौत के जैसा,खत्म अब तो वो रवानी है,
ख्वाब रौंद कर पैरों तले,अपनी जिंदगी तो यूँही आनी-जानी है।।
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल