दादी और आरती- भाग 1- स्कूल का पहला दिन

"दादी, मुझे स्कूल जाना है, मेरा ना बहुत मन कर रहा है। चलो ना दादी। दादी, तुम कुछ बोलती क्यूँ नही? दादी ..... ! दादी .....! सुनो ना, चलो ना ।"- एक छोटे से गाँव की पाँच साल की आरती ने जिद करते हुए कहा।
                बात 1995 की है, बस एक ही सरकारी स्कूल था उस गाँव में और वो भी सिर्फ आठवीं तक का।
                 "सुन तो रही हूँ ना पोते, मेरा मुम्मी...! स्कूल जाना है...? पर अब तो दस से भी ज्यादा समय हो गया है। कल पक्का चल लेंगे, आज तो बहुत देर हो गई है।"- 80 साला दादी ने कहा, जो 60 की लगती थी शरीर से भी और फुर्ती से भी।
                  "नहीं..नहीं..नहीं..,"- पैर पटकते हुए आऱती ने कहा.. "मुझे तो आज ही जाना है और अभी जाना है। मैं कुछ नहीं जानती, अभी चलो ना दादी। "-आरती दादी को हाथ से पकङकर खींचते हुए कहती है।
                 "अच्छा ठीक है बाबा चलती हूँ, जुत्ती तो पहनने  दे एक बार। अरे मेरी जुत्तियाँ कहाँ चली गई भई...?"- दादी ने हैरान होकर पूछा।
                "अभी लाई दादी, मैंने ही उठाकर अंदर रख दी थी तुमको चिढाने के लिए।"- आरती दौड़कर अंदर जाते हुए बोली।

               "मुझे चिढाने के लिए..?? क्या मतलब..??"-दादी ने और भी हैरानी से पूछा।
               "कुछ नहीं दादी, तुम बस चलो ना जल्दी, पहले ही देर हो चुकी है और देर मत करवाओ।"-आरती ने जुत्तियाँ रखकर रौब छाड़ते हुए कहा।
               "अच्छा..! चल मेरी माँ..! मैं देर करवा रही हूँ..!!"- दादी ने हँसते हुए कहा। "अरे देर तो पहले ही हो चुकी है। तभी तो कह रही हूँ कल चलते हैं।"
                "हूं...हूं... दादी...!!"-आरती ठुनकने लगी, एक कंधे को गर्दन से सटाकर, रुठकर एक कोने में जाकर बैठ गई। होंठो को लटकाकर, तिरछी नजरों से दादी को देखने लगी।
               आरती के रूठने के इस अंदाज पर दादी की हँसी छूट गई।अपने हाथ से अपनी हँसी छुपाती हुई कहने लगी- "ओ...हो.. मेरा चाँद तो रूठ गया, मेरा मुम्मा। चल तो चलते हैं ना।"- दादी ने आरती को गले लगाते हुए कहा।
               कुछ देर बाद आरती दादी की ऊँगली पकङकर उछलती-कुदती हुई स्कूल जा रही थी।
                     थोङी देर बाद आरती दादी की ठीक वैसे ही ऊँगली पकङकर उछलती-कुदती हुई वापिस आ रही थी।
            ऱास्ते में उसकी माँ और परिवार की कुछ दूसरी औरतें कुँए से पानी लाने के लिए जाते हुए मिली।

               "कहाँ से आ रही है सवारी..??"-माँ ने पूछा।

             "माँ हम स्कुल गए थे।"-आरती ने बताया।
       "आज...? पर आज तो इतवार है। पता नहीं था क्या..? हमसे पूछ लेते हम ही बता देते।"- माँ ने हैरानी से पूछा।
            "मुझे तो याद ही नहीं था। पूछने का मौका कहाँ दिया इसने। तुम लोग तो खेत में गए थे, इसने जिद कर दी स्कूल जाने की। जा पोते.., तू जाकर खेल ले, वो देख तेरी सारी सहेलियाँ वहाँ खेल रहीं हैं।-दादी ने आरती से कहा।
            "हाँ दादी वो सब खेल रही हैं, मैं भी जाती हूँ खेलने। माँ मैं खेलने जा रही हूँ।"- आरती भागते -भागते बताकर चली गई।
            "..हा..हा "-दादी ने हँसते हुए बताना शुरु किया- "जब चपड़ासी ने बताया कि आज तो इतवार है और आज तो छुट्टी है, तो ये रोने लगी और कहती- .....दादी..! ये क्या बात हुई..?आज ही तो मैं स्कूल आई थी और आज ही इतवार बना दिया,... फिर किसी दिन बना लेना ना इतवार।..! आज तो मैं जाऊँगी स्कूल के अंदर। मुझे नहीं पता,.... मुझे तो अभी जाना है अंदर।  फिर चपड़ासी ने कहा आज तो कोई भी नहीं आया है, कल से आ जाना। आज तो मास्टर जी भी नहीं आए तो तुझे पढाएगा कौन? ...तो कहने लगी... तो क्या हुआ बुला लो मास्टर जी को और कह दो कि इतवार किसी और दिन बना लेना। फिर मैंने समझाया कि मास्टर जी तो दूसरे गाँव में रहते हैं, वहां से उनको कौन बुलाकर लाएगा। ऐ बेटा...! अब जिस दिन मेरी पोती आए ना, उस दिन आगे से इतवार मत बनाना। नहीं तो मुझसे बुरा कोई भी नहीं होगा, समझे..! इस बात पर श्यामू चपड़ासी बोला ठीक है दादी आगे से जिस दिन आरती आएगी उस दिन इतवार नही बनाएँगे और हँसने लगा। तब कहीं जाकर वापस आने को तैयार हुई है ये। "
            इस बात पर सब जोर से हँसे और फिर अपने-अपने काम पर चल दिए।

Share this

Related Posts

Previous
Next Post »

1 comments:

comments
May 10, 2019 at 8:06 AM delete

Wow........ Gjb....
Mast story.....
Publish it's 2nd part also immediately plzzzz

Reply
avatar

Email Subscription

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner