"दादी............दादी, कहाँ हो तुम ? मेरे साथ चल जल्दी स्कूल। जल्दी........... जल्दी। दादी...? कहाँ हो....? माँ, मेरी दादी कहाँ चली गई ?............ उनको स्कूल जाना था मेरे साथ, अभी इसी समय।"- आरती धड़धड़ाते हुए घर के अंदर आई और सवाल पर सवाल पूछती हुई दादी को ढूँढती हुई पूरे घर में भागती फिरने लगी।
"स्कूल जाना था......?? पर क्यूँ....?? क्या हुआ...??"- माँ ने हैरान होते हुए पूछा।
"अरे माँ..! वो सब मैं घर लौटने के बाद बताऊँगी। अभी तो देर हो जाएगी। अब जल्दी से बताओ दादी कहाँ खो गयी हैं?"-आरती ने बेचैन और कुंठित होकर फिर से पूछा।
"अच्छा ..! चल बाद में पूछ लूँगी। तेरी दादी तो तेरे ताऊ के घर गई है।"-माँ ने जवाब दिया।
"भला ये भी कोई बात हुई..? मैं तो स्कूल से भागती हुई घर आई कि दादी को जल्दी से अपने साथ लेकर जाऊँगी, वो है कि ताऊजी के घर चली गई।............ अच्छा माँ मैं दादी को लेकर ताऊजी के घर से सीधे स्कूल चली जाऊँगी।" -आरती भागती हुई घर से निकलते वक्त जोर से बोलती हुई चली गई।
"अरे...! पर बात तो बता..... ?"-माँ तो कहती रह गयी पर आरती वहाँ से भागती हुई चली भी गई।
"दादी..........!"-आरती दादी का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोली - "जल्दी से मेरे साथ स्कूल चल।"
"अरे...! क्या हुआ...? आज नहीं पोते, कल चल लूँगी। अभी देख मैं तेरे ताऊ जी से कुछ जरुरी बात कर रही हूँ।"-दादी ने जल्दी से जवाब दिया।
"मेरे साथ चलकर भी तो तुमको बहुत जरुरी काम करना है। ताऊजी तो यही है......, फिर बात कर लेना। पर वो लङकी चली जाएगी अगर अभी तू मेरे साथ ना चली तो। दादी ... चल जल्दी। ताऊजी तुम दादी के घऱ आने के बाद बात कर लेना।"- आरती दादी को खींचकर ले जाते हुए कहने लगी।
5 मिनट बाद वो दोनों स्कूल पहुँच गई।
"अब तो बता दे क्या जरूरी काम है...? तबसे तो यही कहे जा रही थी स्कूल जाकर बताऊँगी।"-दादी ने पूछा
"अच्छा तो बताती हूँ ना। वो मेरे क्लास में एक लङकी है ना, क्या नाम है उसका... हाँ शीना।"-आरती ने बताना शुरु किया।
"कौन शीना ...?"- दादी ने कुछ याद करते हुए पूछा।
"अरे वही शीना, जिसके बारे में मैंने तुझे उस दिन बताया था, वही जो सबसे लड़ती रहती है।" -आरती ने बताया।
"मुझे तो याद नहीं तुमने कब बताया था किसी शीना के बारे में...! खैर जाने दे, और ये तो बता क्या हो गया उस शीना को?"-दादी ने पूछा।
"ऊसको क्या होना था..! पता है दादी, आज जब मैं पानी पीने आई थी ना ... तो वो नल के पास खङी थी। ना पानी पी रही थी और ऊपर से बातें कर रही थी। तो मैंने ना उसके बाजू से आकर उससे पहले पानी पी लिया। तो पता है ना .... .... .... वो महारानी ना, मुझे मारने लगी..! तो मैने भी उसको मारा। फिर ना .. उसने मेरे बाल पकङकर खींच दिए तो मैने उसके बाल खींच दिए। फिर ना दादी पता है...... उसने एकदम से मुझको धक्का दे दिया। मैं बहुत जोर से गिरी, ये देख मेरी कोहनी पर चोट भी लगी है।"-आरती दादी को अपनी कोहनी दिखाने लगी।
"अरे, मेरी मुम्मी को तो चोट लग गई....! बता कौन है वो शीना..? अभी उसकी खैर-खबर लेती हूँ।"-दादी ने नकली गुस्सेवाला चेहरा बनाकर बहलाते हुए कहा।
"और पता है दादी, जब मैं नीचे गिर गई थी ना तो कहने लगी अबकी हाथ लगाया ना मुझको तो मेरे पापा को बुला लाऊँगी।....... तो मैंने कहा तेरे पापा क्या बङे डी.सी लगे हैं...? मैं अभी अपनी दादी को बुलाकर लाती हूँ, उनसे ना सब डरते हैं, मेरे पापा भी। फिर देखूँगी कैसे बोलेंगे तेरे पापा मेरी दादी के सामने....? तो फिर ना बङी सयानी बनके कहने लगी, जा बुला ला किसी को भी, मैं नहीं डरती किसी से भी। तो मैने कहा यही मिलना पानी के पास अभी बुलाकर लाती हूँ मेरी दादी को। ......... अब देखूँगी कहाँ छुपेगी तुमको देखकर....?"-आरती ने आँखें मचकाते हुए घमंड से कहा।
"अच्छा ये कहा उसने। आई बङी....! मैं भी तो देखूँ कौन है वो किसी से ना डरने वाली...?"- दादी ने अपनी हँसी छिपाते हुए कहा।
आरती स्कूल के बीच खङी होकर ईधर-उधर शीना तो ढूँढने लगी। तभी शीना उसको पानी के पास किसी से बातें करती हुई दिख गई, तो वो दादी का हाथ पकङकर उस ओर खिंचती हुई जोर से बोली-"दादी देखो वो रही वो नकचढी...! बङबोली....!पागल कहीं की...!"
"कहाँ.. ? किधर...? मुझे तो नही दिख रही..!"-दादी ने ईधर-उधर देखते हुए पूछा।
"अरे दादी ये रही...! देख ये है मेरी दादी ......। अब बोल क्या बोल रही थी तू....? बोल ना..! ...........कुछ बोलती क्यूँ नहीं अब...?"-रौब झाड़ते हुए बोली आरती।
"तो तू है शीना..! तुमने मारा कैसे मेरी पोती को...? आगे से ऐसा कुछ किया ना तो तेरी खैर नही। समझी..!"-दादी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
शीना अचानक झेंप गई और ऊपर से आरती दादी के पीछे खड़े होकर टेढे-मेढे मुँह बनाकर शीना को चिढाने लगी।
"अच्छा पोते...! तेरी स्कूल की छुट्टी हो रखी है तो तू अपना थैला ले गयी थी क्या घर..?"- दादी ने पूछा।
"नहीं दादी, थैले के चक्कर में पड़ती तो तुझे बुला कर लाने में देर ना हो जाती।"-आरती ने समझाया।
"तो ठीक है, जल्दी से अपना थैला उठा ले आ। मैं तब तक इसकी अच्छे से खबर लेती हूँ।"- दादी ने कहा।
"ठीक है दादी अभी लाई।"- आरती ने शीना को चिढाते हुए कहा और अपना थैला लेने क्लास की तरफ भागी।
"अरे पोते डर मत, असली में थोङी ना डाँट रही थी। अच्छा तेरे पापा का क्या नाम है पोते...?" -दादी ने प्यार से पुचकारते हुए पूछा।
"मेरे पापा का नाम दलबीर फौजी है।"- शीना ने धीरे से बताया।
"अच्छा तेरे दादा का नाम केहर सिंह है क्या....?"- दादी की आँखों में चमक थी पूछते समय।
"हाँ..." - शीना ने छोटा सा जवाब दिया।
"तो तेरी दादी को आज घर जाकर कहना......, मेरी दादी मास्टर की माँ बुला रही थी और तू भी उसके साथ आना........। ठीक है बेटा याद रखेगी ना......! क्या कहेगी जाकर....?" -दादी ने दुलारते हुए पूछा।
"यही की दादी मास्टर की माँ मिलने के लिए बुला रही है।"- शीना ने थोङा सहज होकर जवाब दिया।
" शाबाश, तू तो बड़ी सयानी है रे...!"-दादी ने कहा कि तभी आरती थैला ले कर वापस आ गई थी।
"अच्छा अब जो भी कहा है, भूलना मत...! समझी....! जाकर अपनी दादी को बता देना कि मैंने बुलाया है।... याद रखना।... ठीक है...!" -दादी ने समझाते हुए कहा और आरती से बोली -"चल बेटा घर चलते हैं।"
थोड़ी सी आगे जाने के बाद दादी फिर से बोली -"बहुत डाँटा मैंने उसको। देखना आगे से ऐसा कुछ वो कभी भूल कर भी नहीं करेगी।"- दादी ने तसल्ली दी।
"वो तो ठीक है दादी लेकिन उसकी दादी को क्यूँ बुलाया तुमने घर..?" -आरती ने असमंजस में पूछा।
"अरे..! उसकी दादी के सामने भी तो डाँटूगी ना,इसलिए बुलाया है..!" -दादी ने बात टालते हुए कहा।
"अच्छा...! तू तो फिर उसकी दादी से भी नहीं डरती ना दादी....! तू तो बड़ी मस्त है दादी..! मैं भी तेरी तरह बनूँगी...!"-आरती चहकते हुए बोली।
"हा.... हा.... अच्छा...!" -दादी हँसने लगी।
आरती दादी की उँगली पकड़कर उछलते -कूदते घर आ रही थी। दादी पर बड़ा गर्व हो रहा था उसको।