भविष्यवाणी


"पंडित जी..! बताइए ना, हमारे बेटे का भविष्य कैसा होगा..? वो क्या बनेगा जीवन में..? "-नवजात शिशु के माता-पिता ने बङी उत्सुकता से अपने बेटे के नामकरण संस्कार के लिए आए हुए पंडित जी से पूछा।
               "जरा रूकिए..! अभी बताए देते हैं। ये हो गई सारी जानकारी आपके बेटे की - जन्म तिथि, जन्म-समय,राशि । अच्छा तो सारी जानकारी के अनुसार,...... एक मिनट......................... हाँ जी तो सारी जानकारी के अनुसार - वाह क्या बात है..! आपका बेटा तो बङा भाग्यशाली है। किस्मत बहुत अच्छी है आपके बेटे की । जीवन में वो बहुत बङा आदमी बनेगा, हर तरफ गाङियाँ ही गाङियाँ होंगी उसके। बहुत कम लोग होते हैं इतने भाग्यशाली।" पंडित जी ने खुश होते हुए बताया ।
" बहुत-बहुत धन्यवाद पंडित जी।" नवजात शिशु के माता-पिता ने खुशी-खुशी पंडित जी को मुँहमाँगी दक्षिणा देते हुए कहा।
               समय का पहिया चलता गया और नवजात शिशु बङा होकर स्कूल जाने लगा। फिर धीरे-धीरे उसकी उम्र के साथ-साथ उसकी कक्षा भी बढती गई। पढने में ज्यादा ध्यान नहीं था उसका।
              कभी जो कोई उनके बेटे की शिकायत करता कि आपका बेटा सारा दिन खेलता रहता है, कभी पढता हुआ तो दिखता ही नहीं। तो माता-पिता बङे गर्व से हमेशा सबको यही कहते -"अरे बहुत किस्मतवाला है हमारा बेटा..! बहुत बङा आदमी बनेगा। पंडित जी ने बताया था गाङियाँ ही गाङियाँ होंगी इसके हर तरफ। कहते हैं ना, जिसके भाग्य में जो लिखा होता है वो तो उसको मिलता ही है। चाहे ये कुछ करे या नहीं, हमारे बेटे को भी वो सब तो मिलेगा ही जो इसके भाग्य में लिखा हुआ है।"
             गिरते-पङते उनके बेटे ने किसी तरह बारहवीं तो पास कर ही ली।
             कुछ सालों बाद अङोसी-पङोसी और सब जानने वाले पंडित जी की भविष्यवाणी अक्षरशः सच हुआ देखकर हैरान रह गए। सच में उसके चारों ओर गाङियाँ ही गाङियाँ थी।
            दरअसल वो सिपाही लगा था ट्रैफिक पुलिस में और हर रोज चौराहे पर खङा होकर गाङियों को दिशा-निर्देश देता था। सच में ही उसके हर तरफ गाङियाँ ही गाङियाँ होती हैं, जो उसके ईशारों पर ही चलती हैं। क्या भविष्यवाणी की थी पंडित जी ने..!!!

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ? मैं क्यूँ हूँ? मैं क्या हूँ?
पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

मैं जीवन हूँ या हूँ बस गुजरता हुआ पल?
मेरा अस्तित्व ही दुश्मन बनकर कर रहा बेकल।
मैं निराशा हूँ या कि तकदीर की दरिंदगी ?
मैं तो नाउम्मीदी हूँ और चाहतों के नाम पर शर्मिंदगी।।
लगता है मर गई हूँ, चाहे बेशक सदेह हूँ।
पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

क्यूँ जलाती हैं चलती सांसे और क्यूँ हूं मैं ज़िंदा?
खुद का ही बोझ ढोते-ढोते हो गई हूँ मैं शर्मिंदा।।
मैं एक सूनी डगर, रेगिस्तानी राहे-गुजर।
मृगतृष्णा से भटकती दर-दर,खुद से हो चुकी बेदर।।
मंजिल नहीं जिसकी, मैं तो वो राह हूँ।
 पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

हर मुस्कराहट का कर्ज चुकाती हुई मैं।
हर तड़प पर, सहारे की कीलें ठोकती मैं।।
मैं तो बेजान होती जा रही हूँ।
खुली आँखों से सोती जा रही हूँ।।
होश में हूँ, फिर भी नामालूम कहाँ हूँ?
पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

ध्वस्त हो चुके ख्वाबों की संगिनी हूँ मैं।
तकदीर के निर्दयी तमाशों की बंदिनी हूँ मैं।।
मैं खुद को ढूँढती हूँ महफिलों की तन्हाईयों में।
घुट-घुट कर मरती वक्त की रुसवाईयों में।।
दुखों में डूब चुकी जो, मैं वो सतह हूँ।
पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

उजड़ी बहारों में काँटों को तलाशती मैं।
आज में उलझे कल को खंगालती मैं।।
तूफ़ानों से होती बेसबर, खोती जा रही अपनी ही कदर।
सांसो से मुक्ति बेहतर, क्योंकि खुद से हो चुकी बेदर।।
आस नहीं छूटती फिर भी मैं कैसी बेहया हूँ।
पूछा जब भी दिल ने तो लगा मैं बेवजह हूँ।।

अधुरा क्षितिज़

तिल-तिल करके टुकड़े -टुकडे़ हो  रहा है ये मेरा दिल,
हम तो हैं तन्हा पर देखो सज गई है महफिल।
यकीं हो चला है अब तो, हम नहीं खुशियों के काबिल,
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल ।।

उस क्षितिज़ के जैसी ही, अपनी भी अधुरी कहानी है,
गम ही है साथी अब तो, खुशियाँ तो यारों बेगानी हैं।
ठहर गया सब मौत के जैसा,खत्म अब तो वो रवानी है,
ख्वाब रौंद कर पैरों तले,अपनी जिंदगी तो यूँही आनी-जानी है।।
सपने भी बँध गए बेड़ियों में, दुआएँ गई हैं अब तो सिल।
काश डूब जाऊँ इस दरिया में, ना हो रुबरु कभी साहिल 

चांटा

"सुन, कहाँ जा रही है? ?"
"अरे मम्मी !..बस वो गली के मोड़ तक ही जा रही हूँ। मेरा पेपर है ना परसों, तो मुझे कुछ जरुरी नोट्स चाहिए है। मेरी वो सहेली है ना सिम्मी, वो अभी अपनी ट्युशन क्लास से घर जाते हुए मुझे अपने नोट्स देने के लिए उस मोड़ तक आ रही है। आपको तो पता है ना मेरा गणित कितना कमजोर है। मेरी तैयारी में मदद हो जाएगी। नहीं तो बहुत गंदे नंबर आएँगे मेरे।"- अपनी मम्मी के कंधो पर हाथ रखते हुए संध्या ने कहा।
"क्यूँ ..?? उसे पढाई नहीं करनी क्या..? जो वो अपने नोट्स तुझे देने आ रही है।"-मम्मी ने पूछा।
"अरे मम्मी, उसने वो नोट्स अच्छे से दोहरा लिए तभी बड़ी मुश्किल से देने को तैयार हुई है। अब मैं जाऊँ??..नहीं तो वो चली जाएगी। बड़ी मुश्किल से मनाया है यहाँ तक आने के लिए।"-संध्या ने पूछा।
"ठीक है पर अकेले नहीं जाएगी तू। अपने भाई को बोल तेरे साथ चलने को।"-मम्मी ने हुक्म दिया।
"मम्मी..!!! ये क्या बात हुई भला...??? आपको पता तो है ना भाई का, वो कहाँ घर में रहते हैं। पता नहीं कहाँ निकल गए थे घर आते ही। अरे मम्मी जाने दो ना, यही तक तो जाना है, वो मेरा इंतजार कर रही होगी, ज्यादा देर नहीं रुकेगी। प्लीज मम्मी।"-संध्या ने जिद करते हुए कहा।
"ठीक है तो मैं चलती हूँ तेरी साथ।"-मम्मी नेअपना दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।
"ठीक है  मम्मी तो फिर जल्दी चलो।"- संध्या ने चहकते हुए कहा।

नोट्स लेने के बाद घर में घुसते ही संध्या ने अपनी मम्मी से पूछा- "मम्मी मुझे एक बात समझ नहीं आती भाई सारा दिन घर से बाहर रहते हैं। बिना बताए कहीं भी जाते हैं। आप उनको तो कभी कुछ नहीं कहती। मैं नीचे गली तक भी जाऊँ तो कभी अकेले नहीं जाने देती। ऊपर से दस सवाल पूछती हो। ऐसा क्यों ..???"
"देख बेटा तू लड़की है और जमाना बहुत बुरा है। तुम्हारे साथ कुछ गलत हो गया तो?  हम क्या करेंगे फिर..?? कौन तुझसे शादी करेगा..??  घर की इज्ज़त उछलेगी सो अलग। और बात सिर्फ जमाने की नहीं है, भले घर की लड़कियाँ ऐसे मटरगश्ती करती नहीं घूमती। भाई तो लड़का है। यही तो उम्र है मौज-मस्ती की। फिर तो जीवन के इतने छमेले हैं,उसको कहाँ वक्त मिलेगा मौज-मस्ती का।"- मम्मी ने समझाते हुए कहा।
 "तो क्या लड़कियों को सिर्फ शादी के लिए जन्म दिया जाता है..?? हमारी उम्र कब होती है मौज-मस्ती की और भले घर के लड़के आवारागर्दी करते फिरते रहे तो घर की इज्ज़त नहीं उछलती क्या मम्मी..??"- संध्या ने तपाक से नए सवाल दाग दिए।
"बड़ी ज़बान चलने लगी है तेरी तो। अब मेरी ये बात कान खोलकर सुन जब एक लड़की अपने बाप के घर पर बाप-भाई की मर्जी से चले और पति के घर में पति की मर्जी से रहे तो सारी उम्र मौज में रहती है। ये जो अपने माँ-बाप और पति की  शिकायतें करती हैं ना, वो ज्यादातर उनकी मर्जी से नहीं चलती इसलिए सारी दिक्कतें होती हैं। तुझे भी ये सब सीखना है इसलिए बता रही हूँ। क्योंकि शरीफ़ और सुशील लड़कियों की यही निशानी होती है। समझी।"- मम्मी ने इस बार थोङा और सख्ती से समझाते हुए कहा।
"और शरीफ़ और सुशील लड़कों की क्या निशानी होती है मम्मी..?? लड़कियाँ दूसरों की मर्जी से ही जीने के लिए पैदा होती हैं क्या..?? क्या कभी अपनी मर्जी से नहीं जी सकती ..??"- संध्या सवाल पर सवाल करते हुए बोली।
"अरे..! कितने सवाल पूछेगी तू..?? अगर तू इन सबको खुश रखेगी तो ये सब भी तो तेरी खुशी का ख्याल रखेंगे।"-मम्मी ने इस बार थोङा शांति से समझाते हुए कहा।
"तो इसका मतलब लड़कियां तो सिर्फ दूसरों का हुक्म बजाने के लिए जन्म लेती हैं। पर स्कूल में तो सिखाया जाता है कि मैं पढकर कुछ भी कर सकती हूँ ,तो क्या मैं अपनी मर्जी से नहीं जी सकती..?? और आप लड़कों के बारे में कुछ क्यूँ नहीं कह रहीं..?? मैंने कितनी बार आपको बताया है भैया की हरकतों के बारे में । मेरी सब  सहेलियाँ उनकी शिकायत करती हैं कि वो आते-जाते उनको छेड़ते हैं। पर आपने आज तक भी उनको कुछ नहीं कहा। कभी उनपर भी जरा रोक-टोक लगा दिया करो। मेरी बड़ी बेइज्जती करवा रखी है उन्होने पूरे स्कूल में।"-संध्या ने रोष दर्शाते हुए कहा।
"बस बहुत हुआ अब और फालतू बकवास नहीं। दुनिया में हमेशा से ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होगा। तू कोई अल्बेली नहीं है, जो तेरे साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। मुझे नहीं कहना तेरे भाई को कुछ। अभी बच्चा है, जब बड़ा होगा अपने आप सब समझ जाएगा। तू मुझे मत सीखा,  तू कल की लड़की मुझे बताएगी क्या सही है और क्या गलत। तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है मैने।....और अब तुझे पेपर की तैयारी नहीं करनी क्या..?  जा पढ ले जाकर। एक बात और कान खोलकर सुन ले, आगे से ये सब बकवास बोलना तो दूर, सोचना भी मत। समझी..! लङकियों को ऐसे ही जीना होता है। अब अगर मार ना खानी हो तो जाकर चुपचाप पढाई कर ले।"- मम्मी ने संध्या को चांटा दिखाते हुए कहा।
थोड़ी देर बाद-
 संध्या के पापा चिल्लाते हुए घर के अंदर आए - "सीमा कहाँ हो तुम। जल्दी यहाँ आओ। सीमा...??..... सीमा..?? सुनती हो कि नहीं..?? कब से चिल्ला रहा हूँ..!"
"क्या हुआ..?? आ रही हूँ। क्या बात है..?? सब ठीक तो है ना..??"- संध्या की मम्मी ने घबराते हुए पूछा।
"सब ठीक ही तो नहीं है। रोहन को पुलिस पकड़कर ले गयी है। तुम्हारे भाई को फोन करो जल्दी से कोई जुगाड़ लगाये और जल्द से जल्द उसे छुड़ाए।"- संध्या के पापा ने हाँफते हुए कहा।
"हे भगवान..! पर क्यूँ..??  मेरे बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा है..???"- मम्मी ने रोते हुए पूछा।
"वो सब बाद में बताऊँगा, पहले तू अपने भाई को फोन तो लगा।"
"ठीक है, अभी लगाती हूँ।"

"मम्मी बड़ी तेज भूख लगी है, खाने को है क्या कुछ? ? और पापा क्या कह रहे थे। वो मैं कम्प्यूटर पर हैडफोन लगाकर काम कर रही थी, तो सुनाई नही दिया क्या कह रहे थे वो।................. मम्मी....! क्या हुआ...?? आप ठीक तो हो ना? ?"- संध्या ने अपनी मम्मी को रोते हुए देखकर पूछा।
"वो तेरे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी।"-मम्मी ने रोते हुए बताया।
"क्या?? पर क्यूँ??"- अचानक संध्या के मुँह से निकला।
"अरे किसी करमजली ने पुलिस में शिकायत कर दी छेड़छाड़ की। उसे और उसके दोस्तों को पुलिस उठा कर ले गयी।....... कीड़े पड़े उस करमजली को..!! तेरे पापा बता रहे थे पुलिस ने बहुत मार लगाई मेरे लाल को। हाय..! ... हाथ नही काँपे उनके मेरे मासूम से लाल को मारते समय। ..जरा सी भी दया नहीं आई उनको..?? और ये  लड़कियाँ..! कोई शर्म लिहाज तो है नहीं इनको, खुद तो नंगा-नाच करती फिरती है, कोई कुछ कहदे इनकी बेशरमी देखकर तो पुलिस बुला लेती हैं।... पता नहीं कोई इनको कुछ क्यूँ नहीं कहता और पुलिस इनको क्यूँ नहीं पकड़ती..?? कितना गंद फैला रखा है हर जगह इन्होने।"- मम्मी गुस्से में बङबङाने लगी।
"गंद इन्होने नहीं आपके बेटे ने फैला रखा है।"-संध्या गुस्से से तमतमाती हुई बोली-" कितनी बार मैंने आपको बताया था भाई की हरकतों के बारे में। पर आप हमेशा मुझे ही चुप कर देती। आज ही तो बताया था मैंने, आप तो मारने तक चली थी मुझे।........ पर नहीं सारी बंदिशें तो लङकियों के लिए होती है ना, भगवान ने तो सिर्फ लङकों को ही बनाया है ना, हमको नहीं। इसलिए उनको गलत करने का लाईसेंस भी मिल गया ना..! है ना मम्मी..!! और कैसी बेशरमी मम्मी..?? स्कुल की वर्दी और आप जो पहनते हो वो भी बेशरमी में आता है क्या। क्योंकि वो स्कूल की लङकियों को तो छोङो आप की उम्र की औरतों को भी नही बख्शते। ये सब नंगा-नाच और बेशरमी में नहीं आता है क्या.. ?? वैसे भी गंद कपङों में नही भाई जैसे लोगों की सोच में होता है।"
 एक गहरी और लंबी सांस लेकर संध्या फिर से कहना शुरू करती है- "काश उनको भी रोका-टोका होता तो आज ये दिन ना देखना पङता। काश के कभी आप लोग ये समझे कि लङकों को समझाना भी आप लोगों की ही जिम्मेदारी होती है और उनको भी रोकना-टोकना होता है, क्योंकि माहौल सिर्फ लङकियाँ खराब नहीं करती। लङके भी जिम्मेदार होते हैं उस माहौल को खराब करने में। ये सरासर आप लोगों की गलती है, अगर आप दोनों ने उसको समझाया होता कि ये सब गलत है तो शायद वो ऐसा कभी नहीं करते।"

अचानक से एक जोरदार चांटा उसके मुँह पर पङता है।
"....चुपचाप चली जा यहाँ से, वरना अब तेरे साथ जो सलुक होगा उसकी जिम्मेदार तू होगी।..... बङी आई हमको गलत कहने वाली। कहीं गुस्से में मैं हद से बढ जाऊँ तू चुपचाप चली जा यहाँ से।"-गुस्से में लाल-पीली होते हुए मम्मी ने कहा।

 संध्या पैर पटकते हुए अपने कमरे में गई और धङाम से बैड पर गिरकर रोने लगी। रोते-रोते उसके दिमाग में एक सवाल कौंधा- ये चांटा उसके मुँह पर था या समाज के।।।।




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