ये बादलों के नीले पहाङ,
जो आसमान के हैं उस पार।
पुकारते हैं हमें कि देखो,
प्रकृति ने किया फिर से हार-श्रृंगार।।
छाई पेङों पर नई हरियाली,
जब आया बरसात का त्यौहार।
झमाझम बरसते हैं मेघ ऐसे,
कि छा गई है हर ओर बहार।।
हर जीव को मिला नवजीवन,
गाए धरा का कण-कण राग मल्हार।
धुल गई अशुद्धियाँ सारी,
हुई धरती माँ नवयौवन से सरोबार।।
कभी मक्खन समेटे अपने में ये गगन,
तो कभी लाता काली घटाओं के वार।
निचुङती गरमी से दिलाने निजात,
देखो आया सावन का कहार।।
भांत-भांत की सजीवटता झलकती,
नजर आता जीवन का असीमित सार।
मुरझाए फूल भी खिल उठे तब,
जब आसमान से हुई बूँदों की बौछार।।
मीठे-तीखे पकवान भाते,
हवाओं में बहता एक नशीला खुमार।
नीरस, बेरंग से होते क्षणों में ,
अचानक सज जाते रंग बेशुमार।।
टप-टप कर टपकते तन के पानी का,
बारिशें उतारने आई तन का चिपचिपा भार।
खिल उठा हर रुप धरा का,
देखो जब आया बरसात का त्यौहार।।
जो आसमान के हैं उस पार।
पुकारते हैं हमें कि देखो,
प्रकृति ने किया फिर से हार-श्रृंगार।।
छाई पेङों पर नई हरियाली,
जब आया बरसात का त्यौहार।
झमाझम बरसते हैं मेघ ऐसे,
कि छा गई है हर ओर बहार।।
हर जीव को मिला नवजीवन,
गाए धरा का कण-कण राग मल्हार।
धुल गई अशुद्धियाँ सारी,
हुई धरती माँ नवयौवन से सरोबार।।
कभी मक्खन समेटे अपने में ये गगन,
तो कभी लाता काली घटाओं के वार।
निचुङती गरमी से दिलाने निजात,
देखो आया सावन का कहार।।
भांत-भांत की सजीवटता झलकती,
नजर आता जीवन का असीमित सार।
मुरझाए फूल भी खिल उठे तब,
जब आसमान से हुई बूँदों की बौछार।।
मीठे-तीखे पकवान भाते,
हवाओं में बहता एक नशीला खुमार।
नीरस, बेरंग से होते क्षणों में ,
अचानक सज जाते रंग बेशुमार।।
टप-टप कर टपकते तन के पानी का,
बारिशें उतारने आई तन का चिपचिपा भार।
खिल उठा हर रुप धरा का,
देखो जब आया बरसात का त्यौहार।।