जीवन-चक्र

ना खुशी का फव्वारा फूटा है,
ना गम की गहराई बढी है।
चढ रहे थे जिस दृढ संयम पर,
हाँ, उसकी स्वस्थ मानसिकता घटी है।
हम तो नहीं बनना चाहते ऐसे,
जिसने प्रभाव की चाहत गढी है ।
उन ख्वाबों की दुनिया में गुम हुए,
जिनके आधार की ही नींव कटी है।
बेसिर-पैर की उम्मीदों ने लगता है,
हमारे दिल की कमियाँ सारी पढी हैं।
पर
 देखो ये क्या हुआ??

बदल गई है ये जिंदगानी,
खत्म हो गई वो कहानी।
जिसने कभी हलचल मचाई थी
हर जीवन की दरिया में,
हैरान कर जाता है,
जीवन का हर ऐसा ही पल,
नहीं जान पाता कोई, क्या था ये,
जो लम्हा बीता था इस जीवन का।
असमंजस में फंस जाते हैं सब,
कुछ भी नहीं आता है समझ में,
कशमकश क्या थी वो जिंदगी,
नहीं समझ पाते कब तक हम ये।।

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