र बड़े स्नेह से उसका हाथ पकड़कर आगे-आगे चल पड़ा तो री उसके पीछे-पीछे मुस्कराती हुई, धीरे-धीरे चल रही थी। र, री की चाल के अनुसार ही चल रहा था। पहला अनुभव था तो री थोड़ा शरमा रही थी, पर खुश थी। र का उसका हाथ पकड़कर चलना उसे अच्छा लग रहा था।
वो बार-बार पीछे मुड़कर देखता तो वह भी उसकी तरफ देखती, दोनों की नजरें मिलती और दोनों मुस्करा देते।
ऐसे ही चलते-चलते समय गुजरता गया।
और जैसा कि बदलने की तो वक्त की फितरत ही होती है, वैसे ही जीवन के रंग-ढंग के मुताबिक, उनका रवैया भी अब बदलने लगा था।
र की चाल ने गति पकङ ली और हाथ की पकङ में स्नेह की ढील की बजाय अधिकार की जकङ आने लगी थी, ऊधर री को अब ये नया अनुभव, उसके हाथ की पकङ, किसी सजा की तरह महसूस सी होने लगी थी।
शुरुआत में तो री ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया, पर फिर ये जकङ उसे धीरे-धीरे अखरने लगी और उसके दिल में नाराजगी का बीज बोती चली गई। उसे महसूस होने लगा जैसे वो जेल में बंद है और र को अब उसकी परवाह ही नहीं रही। उसे सिर्फ अपने अधिकारों की पङी है, उसके जज्बातों की कोई कदर ही नही है।
इस सोच से उसमें एक उदासीनता छा गई और उसकी चाल धीमी हो गई, जिससे उन दोनों की चाल का तालमेल बिगङने लगा।
अब र को शिकायत होने लगी कि वो उसकी चाल के अनुसार अपनी चाल में बदलाव क्यूँ नही ला रही। वो बार-बार उसको अपनी चाल से तालमेल करने को कहता, कुछ देर अपनी चाल को धीमे भी करता। पर फिर कुछ समय बाद उनका तालमेल बिगड़ जाता, तो वो इस बार-बार के कहने-कहाने से तंग होकर उससे नाराज रहने लगा। उसे शिकायत रहने लगी कि वो उसके साथ-साथ क्यूँ नहीं चलती।
ऐसे ही अपनी-अपनी नाराजगी में वो एक-दूसरे से खफा-खफा से आगे बढ़ने लगे। वो एक-दूसरे को देख भी तो नहीं पा रहे थे, जो एक-दूसरे का चेहरा देखकर भावनाओं को समझने की कोशिश करते तो।
र पीछे मुड़कर देखने में अपनी बेइज्जती मानने लगा, तो जब कभी देखता भी तो री को भी उसकी तरफ देखने में अपनी बेइज्जती लगती। दोनों एक दूसरे से खफा, बिना बोले और अपनी-अपनी जिद् में आगे बढते रहे, वक्त कटता रहा।
दोनों एक-दूसरे को ना देख कर दाएँ-बाएँ देखते हुए चलते रहे।
री ने दाएँ तरफ देखा कि कोई र अपनी री से बार-बार पीछे मुड़कर पूछ रहा था, उसका ख्याल कर रहा था। कुछ भी करने से पहले उसकी राय जरूर लेता था। इस बात पर उसका गुस्सा और भी बढ गया कि उसका र तो उससे कुछ पूछना तो दूर, उल्टा उस पर अपनी मर्जी थोपता रहता है। अपनी भावनाओं के बारे में बताओ तो उल्टा डाँट देता है।
उसका भी मन करता है कि कभी वो अपनी मर्जी से चले पर ऐसा करने के लिए र को पीछे आना पड़ता। पर समाज का तो यही नियम था कि र हमेशा आगे चलते हैं और री उनके पीछे-पीछे।
पर ऐसा क्यों है? -ये सवाल उसका मन बार-बार करता।
इस बात पर उसका मन हुआ, अभी अपना हाथ छुड़ा कर भाग जाए कहीं दूर और अचानक से हाथ छुड़वाने के लिए एक झटका दिया जिससे र के हाथ की पकड़ ढीली पड़ गई।
पर फिर तुरंत र ने उसका हाथ जोर से पकड़ लिया।
ऊधर जब र ने बाँए तरफ देखा कि कोई री अपने र की चाल के मुताबिक धीरे और तेज हो रही थी तो उसकी नाराजगी की कोई सीमा ना रही। फिर मेरी री क्यूँ इतने नखरे और अकड़ दिखा रही है, इसकी तरह मुझसे लय मिलाकर क्यूँ नहीं चल रही?? - ये सोचते हुए उसने गुस्से में री के हाथ को और भी जोर से जकड़ दिया।
इस पकड़ से री का हाथ दर्द करने लगा और उस ने फिर हाथ छुङाने की कोशिश की पर र ने फिर जोर से हाथ पकङ लिया।
र को ये सब साथ सफर के लिए अहम लगता था, तो री को ये सब अपने ऊपर होने वाला अत्याचार।
र को उसका रवैया अङियल और जिद्दी लगता था, वही री को अपनी तकलीफ जताने का एक माध्यम।
अपनी-अपनी विचारधारा और आंकलन ने उनके बीच की दूरियाँ औऱ भी बढा दी।
र ने री को उसके अङियलपन का ताना दिया और अपनी दाई तरफ दिखाया कि कैसे एक र अपनी री को जिद् करने पर घसीटते हुए लेकर जा रहा था और उसकी बात ना मानने पर उसके साथ हाथा-पाई भी कर रहा था। उसने कहा देख ऐसे र भी होते हैं, पर वो उसके साथ ऐसा कभी नहीं करता, पर फिर भी वह उसकी कदर नहीं करती।
री ने भी उसे बाई और एक री को दिखाया जो अपने र को अपनी मर्जी से चला रही थी और साथ ही में एक दूसरे र का हाथ पकङकर चल रही थी। उसने कहा कि देखो ऐसी री भी होती हैं। पर वो तो ऐसा करना तो दूर सोच भी नही सकती और फिर भी वो उसकी परवाह नही करता- कहते हुए री ने फिर से अपना हाथ छुङवाने की कोशिश की और इस बार कामयाब भी हो गई।
उसकी इस हरकत पर र एकदम से सन्न रह गया।
तभी अचानक इसी कहने-सुनने के दौरान उन्होने एक र और री को देखा जो हाथों की ऊँगलियों में ऊँगली डालकर आगे-पीछे नही बल्कि एक साथ चल रहे थे।
दोनों एकदम से चुप हो गए औऱ सोचने लगे कि क्यूँ ना एक बार ये आपसी मतभेद भुलाकर, ऐसे चलकर देखा जाए...!!
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा जैसे एक-दूसरे के मन की बात की थाह लेना चाहते हों और फिर ऐसे ही चल पङे।
साथ-साथ चलने से अब दोनों बङी आसानी से एक-दूसरे का चेहरा देखकर भावनाओं को अंदाजा लगा पा रहे थे। जब भी दोनों में से किसी को एक-दूसरे की दिशा में कुछ देखना होता तो दोनो बङी आसानी से बिना किसी झिझक के एक-दूसरे की दिशा बदल लेते और एक-दूसरे को नजरिया समझ पाते। इस बात से समाज के बनाए नियमों की अवहेलना भी नही हो रही थी।
दोनों एक-दूसरे की पकङ के दर्द का अंदाजा भी आसानी से लगा पा रहे थे तो बड़े स्नेह और आदर से एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे। अब दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करने लगे थे। जिससे दोनों के बीच की खाईयाँ पटने लगी थी।
ऐसे ही दोनों को साथ चलते-चलते एक अरसा गुजर गया। इस लंबे एक साथ गुजरे अरसे से दोनों को एक बात समझ आई कि हम इंसान अपना ज्यादातर समय र और री के रोने-धोने में गुजार देते हैं, इसके बजाय अगर हम ये वक्त एक साथ मिल-जुल कर गुजारें तो जीवन कहीं ज्यादा सुखद
और सार्थक लगता है।
अगर हम नर और नारी के अस्तित्व के लिए लड़ने की बजाय, ऊपरवाले के बनाए हुए साथ मिलकर चलने के संगी-साथी की तरह रहें, तो हर दुख-सुख भी कितना शांतिमय और अर्थपूर्ण लगने लगता है। जीवन का हर रंग एक-दूसरे की एक-दूसरे के लिए चाहत और महत्व समझा कर जाता है।