
ताउम्र जिंदा रहेंगी
तेरी महोब्बतें इन आँखों में,
पर अब कभी ये जिद्दी आँखें
तेरा दीदार ना करेंगी।
रुसवाईयां ना मिली कभी
तो ना मिली कभी वफा,
तेरी छाया पर भी मेरी सदाएँ,
हके-इजहार ना करेंगी।
घूँट-घूँट पीया था तुझे
मेरी रुह ने इस कदर,
कि श्मशान की आग भी
तुझे मुझसे बेजार ना करेंगी।
तुझसे जुदा होकर
पल-पल जलें हैं बेतहाशा,
पर फिर ये निगाहें
कभी तेरा इंतजार ना करेंगी।
टुकङे-टुकङे टुट गई
बिखरकर उम्मीदें सारी
कि अब किसी पर मेरी आहें
यूँही ऐतबार ना करेंगी।।
जिंदा हूँ पर जीना कहाँ है,
टूटा हर ख्वाब ऐसे,
कि जन्नत की दरो-दिवार भी,
अब बेकरार ना करेंगी।।
और अब किसी पर मेरी आहें
यूँही ऐतबार ना करेंगी।।