बैठी थी दिल मसोसकर यूँही,
तभी दूर पङी कलम मुस्कराई,
और कुछ य़ूँ फरमाई-
उठ बैठ अब किस फेर मे अटकी है,
जमाना दौङ रहा, किस राह में तू भटकी है,
जाग नींद से, देख सुनहरी भोर आई,
चल ढूँढें उन उमंगो को, जो कहीं खो आई,
तसल्लियों में गुजर रहा, इक-इक दिन यूँही,
वक्त भाग रहा, जिंदगी खाक ना हो जाए कहीं,
भला बैठी है क्यूँ दिल मसोसकर यूँही,
उन धूँधले ख्वाबों की धूल चल अब उङाते हैं,
सूने कदमों को ख्वाहिशों से धङधङाते हैं,
आ आसमान की ऊँचाईयों को नापते हैं,
और दिल की नकारात्मक खाईयों को ढाँपते हैं,
जीवन गुजारा बहुत, अब जिंदादिली से जीते हैं,
तकदीर नहीं, तदबीर से अपनी कहानी लिखते हैं,
तो चल आ करते हैं एक नया आगाज,
गिरते- सँभलते भरते है एक नई परवाज।।
तभी दूर पङी कलम मुस्कराई,
उठ बैठ अब किस फेर मे अटकी है,
जमाना दौङ रहा, किस राह में तू भटकी है,
जाग नींद से, देख सुनहरी भोर आई,
चल ढूँढें उन उमंगो को, जो कहीं खो आई,
तसल्लियों में गुजर रहा, इक-इक दिन यूँही,
वक्त भाग रहा, जिंदगी खाक ना हो जाए कहीं,
भला बैठी है क्यूँ दिल मसोसकर यूँही,
उन धूँधले ख्वाबों की धूल चल अब उङाते हैं,
सूने कदमों को ख्वाहिशों से धङधङाते हैं,
आ आसमान की ऊँचाईयों को नापते हैं,
और दिल की नकारात्मक खाईयों को ढाँपते हैं,
जीवन गुजारा बहुत, अब जिंदादिली से जीते हैं,
तकदीर नहीं, तदबीर से अपनी कहानी लिखते हैं,
तो चल आ करते हैं एक नया आगाज,
गिरते- सँभलते भरते है एक नई परवाज।।